गुरुवार, 2 अक्तूबर 2008

नो स्मोकिंग प्लीज......

हर फिक्र को धुएं में उड़ाता चला गया.....यह जब देवानंद सिगरेट का कश लेते हुए गाते हैं, तो मन का आनंद संगीत की धुन के साथ रूमानी हो जाता है। उस दौर में शायद छात्र अपने हीरो के दिलकश अंदाज की नकल यूं ही धुएं के छल्ले हवा में उड़ाते हुए करते होंगे। वह नकल बाद में उनकी आदत बन गयी। हालात ये हो गये कि सरकारे हिन्दोस्तां को सावॆजनिक स्थलों पर धूम्रपान पर प्रतिबंध लगाना पड़ा। नामुमकिन को मुमकिन करने की कोशिश की गयी है। कितनों की आत्मा को इस ऐलान में गरम छुरी से काट दिया होगा। कितने ब्लॉगर भाई तड़प गये होंगे। खबर है बॉलीवुड स्मोकिंग के मुद्दे पर दो गुटों में बंट गया है। बहस जारी है। जारी है मंथन। पर अब इस ऐलान के बाद कम से कम उन सभ्य सज्जनों को मौका धूम्रपान पसंद लोगों को दागदार कहने का मौका मिल गया। हीरो की फिल्मों में हीरागिरी भी शायद धूम्रपान के दृश्यों को हटा देने से कम हो जायेगी। पर इस बहस के बीच मैं एक बात पूछना चाहूंगा कि क्या मना भर कर देने से ये समस्या कम हो जायेगी? जिन्हें आदत है, वे भले ही सावॆजनिक स्थानों पर नहीं पीयेंगे, पर कोने में जाकर सुटा मारेंगे जरूर? सोचिये गुमटीवालों पर क्या गुजरेगी?

लेकिन इन बहस, शिकायतों से अलग यह हमें मानना चाहिए कि सिगरेट पीना गलत बात है। गंदी बात है। इसलिए मेरी अपील है, दोस्तों कि अच्छी बातों में साथ दें जरूर। उम्मीद छोड़ें नहीं और सरकार के इस जंग में जमकर साथ दें। अपने बेटे को इससे दूर रहने की सलाह दें। खुद भी सिगरेट पीना छोड़ें। क्योंकि सर ये कोई अच्छी बात नहीं।

वैसे भी अब हर मां अपने बच्चे को सिगरेट पीने से मना करने के लिए बोलती है-बेटा सिगरेट मत पी, नहीं तो गब्बर सिंह (सरकार के रखवाले) आ जायेगा।