गुरुवार, 25 सितंबर 2008

क्या फिर पुरानी राह लौट चली दुनिया?

अमेरिका सबकी दृष्टि में एक समृद्ध और मजबूत राष्ट्र रहा है। विश्व नेतृत्व को दिशा देनेवाला एक सक्षम देश, जो ग्लोबल पॉलिटिक्स को हर हाल में दिशा देता है। हाइप्रोफाइल इंवेस्टमेंट या फास्ट डेवलपमेंट की जब भी बात होती है, तो सबकी नजर अमेरिका की ओर होती है। पर इन दिनों अमेरिकी अथॆव्यवस्था खुद घोर संकट में है। बुश से लेकर बफेट तक सभी चिंतित हैं।

जर्मनी के वित्त मंत्री पीयर श्टाइनब्रुक ने भी कहा है कि मौजूदा वित्तीय संकट विश्व वित्तीय व्यवस्था में अमेरिका के महाशक्ति के दर्जे पर चोट कर सकता है। जर्मन वित्त मंत्री ने कहा कि वित्तीय बाजार को नये सिरे से व्यवस्थित करने के लिए कड़े अंतरराष्ट्रीय नियमों की जरूरत है। यहां भारत में भी अमेरिकी निवेशों पर असर पड़ रहा है। कई हजार नौकरियां खतरे में हैं। यूरोप में महंगाई की मार ने एक व्यक्ति को उलटा लटक कर अनोखा प्रदशॆन करने के लिए बाध्य कर दिया। ये सारी घटनाएं उन देशों में हो रही हैं, जो ग्लोबल इकोनॉमी के आधारस्तंभ माने जाते हैं।

इधर रूस ने जॉिजॆया मामले में कड़ा रुख अख्तियार कर अमेरिकी वचॆस्व को ही चुनौती दे डाली। अब धीरे-धीरे हर मामले में अपना लचीला रुख कम करता रूस अमेरिका के कद को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर छोटा करने में जुटा है। इसे कई जानकार दूसरे शीतयुद्ध की शुरुआत तक मान रहे हैं। चीन ने ओलंपिक का आयोजन कर खुद के इकोनॉमिक सुपर पवार होने की पहचान दे ही दी है। इसे अब तक का बेहतरीन अायोजन भी माना गया है। नेपाल में माओवादी नेता प्रचंड का राष्ट्रपति चुना जाना और चीन की ओर उसका झुकाव एक अलग संकेत देता है। भारत तो कबोबेश मध्यम मागॆ अपना कर सबको खुश रखने की नीति पर ही कायम है। ऐसे में यह अहम सवाल उठ रहा है कि क्या फिर दुनिया पुरानी राह पर लौट चली है?

ये दुनिया ग्लोबल तो हो गयी है। खुलेपन के बहाने बना बनाया सिस्टम तोड़ डाला गया। अब है कि तूफान अमेरिका में होता है, तो उसका असर इंडिया में होता है। आम आदमी जब ग्लोबल दुनिया का हिस्सा बन गया है, तो हो रहा हर बदलाव उसे ही प्रभावित करेगा। चाहे तेल का दाम हो या इंश्योरेंस सेक्टर, हर चीज प्रभावित होती है इन बदलावों से।

अहम सवाल यह है कि हम अपने देश में इन बदलावों से होनेवाले कुप्रभावों से क्या कर रहे हैं। महंगाई की बढ़ती दर पर लगाम लगाने में तो सरकार विफल रही है। ऐसे में अगर अमेरिकी अथॆव्यवस्था की मार हमारे यहां हजारों नौकरियों पर पड़ेगी, तो बेरोजगारों की फौज के लिए नयी नौकरियां कहां से आयेंगी। सवाल महत्वपूणॆ है और चिंतित होने को बाध्य करता है।

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