रविवार, 14 सितंबर 2008

और कितने विस्फोट? अब तो चेत जाये सरकार

दिल्ली में बम विस्फोटों के होने के पहले देश की खुफिया एजेंसियों ने दिल्ली सरकार की सिक्यूरिटी के लिए जिम्मेवार एजेंसियों को ऐसा होने की सूचना दे दी थी। लेकिन उसके बाद भी दिल्ली राज्य की एजेंसियों ने मामले के प्रति ढीला रुख अपनाया और नतीजा हमारे सामने है।

कुछ दिनों पहले लालकृष्ण आडवाणी और नरेंद्र मोदी ने संवाददाता सम्मेलन कर आतंकवाद मुद्दे के प्रति केंद्र सरकार के ढीला होने का आरोप लगाया था। जो सही जान पड़ता है। केंद्र में कांग्रेस की सरकार और दिल्ली में भी। उसके बाद भी इन मुद्दों पर दोनों में तालमेल का अभाव साफ झलक रहा है। पूरा सिक्यूरिटी सिस्टम भगवान भरोसे रह गया है।

आतंकवाद कोई एक दिन में पनपा नहीं है। इसके लिए जिम्मेवार सरकार का ढीला रवैया और हर मुद्दे को राजनीतिक चश्मे से देखने की बन चुकी आदत है। यही हमारा विनाश कर रहा है। भाजपा तो शुरू से ही आतंकवाद के मुद्दे पर कठोर कानूनों को लागू करने की मांग करती रही है। लेकिन दलों के बीच जारी आपसी द्वंद्व और वोटों की राजनीति ने अब आम आदमी की सिक्यूरिटी को हाशिये पर डाल दिया है।

तीन सवाल महत्वपूणॆ हैः -
क्यों नहीं सूचना के बाद भी कठोर कदम उठाये गये?
क्यों नहीं राज्य और केंद्र की एजेंसियों में आपसी तालमेल है?
हमारे अधिकारी इन मामलों के प्रति ढीला रुख क्यों अपनाये रहते हैं?

पूवॆ सीबीआइ निदेशक भी इन मामलों के प्रति पनप रही असंवेदनशील प्रवृत्ति को खतरनाक मान रहे हैं। इन विस्फोटों में जो लोग निशाने पर होते हैं, उनमें अधिकतर आम जन ही हैं। हर वगॆ और हर चीज इससे प्रभावित हो रही है। साथ ही इस देश की छवि ऐसी हो रही है, मानो हर वक्त कहीं न कहीं आग का दरिया बह रहा है। भय और दहशत का जो आलम ये आतंकी कायम करना चाहते हैं, शायद इसमें हमारी सरकार की कमजोरियों के कारण सफल भी हो जा रहे हैं।अब वक्त अपनी कमजोरियों पर गौर कर उन्हें दूर करने की है। कम से कम अब तो सरकार चेत जाये और सिक्यूरिटी के साथ सूचना तंत्र को इतना मजबूत बनाये कि आतंकियों के नापाक मंसूबों का आसानी से खात्मा हो सके।

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