गुरुवार, 18 सितंबर 2008

कितनी आसानी से कह दिया एहसान फरामोश

आप टॉम एंड जेरी देखिये। जेरी को पकड़ने के लिए टॉम प्लानिंग करता है। लेकिन जेरी टॉम की हर चाल विफल कर देता है। रियल लाइफ में टॉम एंड जेरी का यह खेल नेता और पब्लिक के बीच चालू है। नेता यानी टॉम जब चाहे, तब जाल फेंकता है और जेरी या आम जनता उसे विफल कर देती है।

इंडियन नेता इस मामले में कहीं आगे हैं। अगर जाल फेंक कर पब्लिक को फंसाना हो, तो तरह-तरह के हथकंडे अपनाते हैं। भले ही वह उसकी भावना को आहत करता हो। शब्दों के बाण चलाकर जनता का अपनी ओर ध्यान खींचना सबसे आसान होता है। क्योंकि इसमें हींग लगे न फिटकरी-रंग चोखा ही चोखा वाली बात होती है। न पैसा लगा न समय और चरचा में भी आ गये।

अब हालिया मामला ऐसा है कि हमारे एक नेता ने सख्त तेवर अपनाते हुए खिलाड़ियों को एहसान फरामोश कह दिया। खालिस उरदू शब्द है, पर जब दिल को लगता है, तो तिलमिला जाता है आदमी। एहसान फरामोश यानी एहसान नहीं माननेवाला।

एक खिलाड़ी ने शायद कहा था कि सिस्टम से उन्हें पूरा सपोटॆ नहीं मिला। एक इंटरव्यू में माननीय नेताजी से इस बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि ऐसा बोलनेवाले एहसान फरामोश हैं, क्योंकि सरकार ने उन पर लाखों खचॆ किये। यह सब तो ठीक है, लेकिन शब्दों का इतना कड़ा इस्तेमाल कुछ पच नहीं रहा।

पता नहीं क्यों, टीवीवाले बिग बॉस टाइप का शो बनाते हैं। यह पूरा कंट्री तो खुद ही बिग बॉस सीरियल का जीता जागता रूप है। जब लड़ना ही देखना है, तो यहां देखिये। ऊपर से मीडियावाले तो माइक और कैमरा लेकर तैयार हैं ही। कहते हैं शब्द और तीर लौट कर नहीं आते। अब इस मामले में आगे क्या होता है, यह देखना होगा।

एक कहावत है, पेड़ जितना फल से लदा हो, उतना झुकता है। इन माननीय नेताओं की पोजिशन भी जनता की दी हुई है। उस पर जब ये शब्दों के बाण चलाते हैं, तो शायद इसमें उनका दपॆ ही झलकता है। विनम्रता, मीठी वाणी और अच्छे बोल ही अच्छे नेता की पहचान हैं। अगर सच नहीं कहा, तो किताबें पढ़ लिजिये।

वैसे कहने को तो आदमी किसी को कुछ कह सकता है। खिलाड़ी भी शायद भावनाओं में सीमा लांघ जाते हैं। ऐसा होता रहता है। लेकिन शब्दों का इस्तेमाल समझदारी से करना जरूरी है।

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