सोमवार, 26 जनवरी 2009

कौन कहता है कि गजनी हिंसक फिल्म है?

गजनी फिल्म को लेकर जब बहस शुरू हुई, तो देखने की तीव्र इच्छा हुई। देखा और आमिर का कायल हो गया। कायल इस सेंस में आमिर ने १५ मिनट ही बातों को यादों को रख सकनेवाले इंसान के किरदार को जीवंत कर दिया। कहा जा रहा है कि गजनी हिंसक फिल्म है। लेकिन इससे ज्यादा हिंसा तो हम रोज टीवी पर आंखें फाड़ कर देखते हैं। गजनी जो कि फिल्म का विलेन है, हर शख्स के दिलोदिमाग में तब तक पीछा करता रहता है, जब तक फिल्म का नायक उसे मार नहीं देता। अवचेतन मान आमिर के साथ सड़कों पर दौड़ता चला जाता है सरपट बिना सोचे। गजनी सच मायने में कहें, तो आमिर से ज्यादा आसिन की फिल्म है। फिल्म की नायिका जो चुलबुली होने के साथ समाज के प्रति संजीदा है। दूसरों की मदद के लिए हमेशा खड़ी रहती है। और यही उसकी आदत उसके जीवन में ऐसी कठिनाइयां पैदा करती हैं कि उसका टकराव माफिया गजनी से होता है। गजनी उसका खून कर देता है और नायक को ऐसी चोट देता है कि एक बिजनेस अंपायर का मालिक बदले की भावना का गुलाम हो जाता है। फिल्म की नायिका के किरदार में एक सादगी है। एक ऐसी छाप है, जो हम देश की लड़कियों में देखना चाहेंगे। फिल्म की नायिका द्वारा राह चलते अंधे व्यक्ति को सही रास्ते तक पहुंचाना, विकलांग लड़कियों की मदद करना फिल्म के नायक के दिल को बदल डालता है। और वह उसे एक मध्य वगॆ का युवक बनकर पाना चाहता है। उसे बिना बताये फ्लैट गिफ्ट में देना और एक साथ नये फ्लैट में यानी होनेवाले घर में प्रवेश करना फिल्म के यादगार पल हैं। ज्यादातर लेखों में फिल्म के इन पक्षों का वणॆन नहीं किया गया है। हर कोई आमिर की बाजू की ताकत की बात करता है। हिंसा की बात करता है। लेकिन सुनहरे पक्ष को दरकिनार कर गजनी को हिंसा से भरी हुई फिल्म बताकर एक सकारात्मक छुअन और एहसास को गुजर जाने देता है। मेरे अवचेतन मन ने फिल्म में आमिर के साथ सड़कों पर दौड़ते हुए नायक के जीवन की थाह को पाने की कोशिश की। लेकिन लगा उस ऊंचाई को नहीं छू पाऊंगा। क्योंकि उसके स्तर को छूने के लिए जो पैमाना चाहिए, वह मेरे पास नहीं है। गजनी की तारीफ और कितनी करूं, समझ में नहीं आता है। वैसे गजनी ने तीन घंटे में अच्छा मनोरंजन किया।

4 टिप्‍पणियां:

सुप्रतिम बनर्जी ने कहा…

बहुत सही नज़रिया है आपका। लेकिन हक़ीक़त ये है कि मैं इस फ़िल्म को देख कर थोड़ा डिस्टर्ब्ड सा फ़ील कर रहा था। इनफैक्ट यही इस फ़िल्म की क़ामयाबी भी है। अगर, कहानी डिस्टर्ब करनेवाली है, तो दर्शक को डिस्टर्ब्ड होना ही चाहिए। लेकिन फ़िल्म के सकारात्मक पक्ष की भी बात होनी चाहिए, जो आपने किया है।

jitendra ने कहा…

isse jyada hinshak to logo ki bhavnaaye hain

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

छोटा परदा
बड़े परदे से
आकार में बहुत कम है
कह सकते हैं कि छोटा
बड़े परदे का छौना है।

जब छोटे परदे की करतूतों को
बड़े परदे पर दिखायेंगे तो
सारे पिक्‍सल फट जायेंगे
फिर काहे की हिंसा
हिंसा का ही क्रिया कर्म समझें।

बड़ा परदा सौ गुना बड़ा तो होता ही है
शायद, इसलिए छोटे परदे की दस गुनी
हिंसा भी बड़े परदे की बराबरी नहीं कर
पाएगी, उसके लिए तो सौगुनी अपेक्षित है।

अवधेश झा ने कहा…

aapke post ko padh kar yah pata chala ki aap
AAMIR KHAN ke BAHUT BADE " FAN " hain..
isiliye,
GHAZNI jaise hinsak film bhi aapko achhi lagi...
bade dukh ke saath kahna pad raha hai ki ...
BAHUT HI GHATIYA LIKHA HAI AAPNE..
ho sake to mujhe maaf kar de...
wish you all the best for you web-blogging.