गुरुवार, 12 नवंबर 2009

पलायन पर आधारहीन चिल्लपों

पलायन ये शब्द आज-कल कानों में करंट दौड़ाता है। बिहार, यूपी के लोगों के दूसरे राज्यों में जाने को लेकर हंगामा मचता है। वास्तविकता क्या है? वस्तुस्थिति क्या है, इस पर शोध किये बिना राजनीतिक दलों के लोग चिल्लपों मचते-करते हैं। रोजगार कैसे पनपेगा, ये सोचिये। आमदनी कैसे बढ़ेगी, ये सोचिये। जब रुपए का आदान-प्रदान होगा, लोग खरीद-बिक्री करेंगे, तभी व्यवसाय भी बढ़ेगा। अगर एक क्षेत्र के लोग उसी जगह सिमटे रहें, तो जरूरत कैसे पैदा होगी, ये सोचिये। Senior Assistant Country Director, UNDP, K. Seeta Prabhu. द हिन्दू में एक साक्षात्कार में माइग्रेसन के मसले पर बताती हैं कि In India, the estimated number of internal migrants moving from one State to the other is 42 million; those who reside at a place other than their place of birth is as high as 307 million. Studies in Andhra Pradesh and Madhya Pradesh indicate that poverty rates fell by 50 per cent between 2001-02 and 2006-07 for households which had at least one migrant. बिहार और उत्तरप्रदेश के लोगों के नाम पर जो कोहराम मचा है, उसके पीछे संकीर्ण सोच ही है। यहां झारखंड तक में बाहरी-भीतरी की राजनीति होती है। बात ये है कि जो ऊपर के पॉलिसीमेकर हैं, उन्होंने कभी संतुलित विकास पर कभी ध्यान नहीं दिया। वैसे बिहार-उत्तरप्रदेश भी इसके लिए दोषी हैं। भारत जैसे देश में जब एक देश, एक वेश-भूषा की बात लोग करते हैं, तो अलग-अलग कोनों से उठते विवाद कंपा देते हैं। आपके पास विकास के नाम पर कोई मुद्दा नहीं रहता। क्षेत्रीय अस्मिता और भाषा के नाम पर जब राज्यों का निर्माण किया गया, तभी से इन गलत विचारधारा की नींव पड़ गयी थी। उस नींव पर खड़ी दीवार आज हमारे एक देश की अवधारणा को चोट पहुंचा रही है। व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार देश के विकास को बाधित करता है। लोग नक्सल समस्या, पिछड़ापन और विवादों की वजह से पलायन करते हैं। वे जाएं, तो कहां जाएं। अगर दिल्ली में कभी शीला दीक्षित बिहारियों के आने को लेकर सवाल उठाती हैं और चौहान साहब मध्यप्रदेश में ऐसा ही सवाल करते हैं, तो उलटा सवाल इनकी पार्टियों के आलाकमान से पूछा जाना चाहिए कि आपकी पार्टियां इन क्षेत्रों के विकास के लिए क्या करती हैं या कर रही हैं? मुद्दा पूरा का पूरा उसी विकास पर आ टिकता है। आप अपने नेताओं को विकास के लिए कैसे ट्रेंड करेंगे। अगर शिव सेना भाजपा को केंद्र में समर्थन देती है, वह सवाल पूछे कि बिहार या झारखंड में आपके द्वारा समर्थित या शासित दलों का ट्रैक रिकॉर्ड क्या है? जिस दिन राजनीतिक दलों के लोग इस एक पैमाने पर सवाल-जवाब करने लगेंगे, तो ये क्षेत्रीय राजनीति खात्म की ओर होगी। अगर असम में आदिवासियों पर हमले होते हैं और बिहार में रेलगाड़ियों पर हमले किये जाते हैं, तो ये महसूस करना होगा कि प्रभावित सब होंगे। जब कोड़ा चार हजार करोड़ रुपए घोटाले के आरोपी पाए जाते हैं, तो ये सोचना होगा कि क्षेत्र का विकास कैसे होगा? लूट की मानसिकता ने कुछ राज्यों को विनाश के गर्त पर धकेल दिया है। झारखंड में दस से ज्यादा जिले नक्सल प्रभावित हैं और एनएच खत्म हो रहे हैं। व्यवस्था प्रभावित हो रही है, तो ये जाहिर है कि लोग जीविका और सुरक्षा के लिए पलायन करेंगे ही। सवाल पूरे देश के स्तर पर पूछने का है। नहीं तो हमारा देश भी पाकिस्तान बन जाएगा और हम बस ताली बजाते रह जाएंगे एक-दूसरे को गरियाते हुए।

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