शनिवार, 14 नवंबर 2009
ये शख्स परेशान सा क्यूं है?
एक शख्स खुद की जिंदगी पर किताब लिखे जाने से परेशान है। जाहिर है कि किताब भी किसी खास व्यक्तिगत संबंध रखनेवाले व्यक्ति ने लिखी होगी। वह शख्स मशहूर है। उसकी जिंदगी की कुछ ऐसी बातों को दुनिया के सामने लाया गया है, जो कि मीडिया या कहें लोगों में रुचि पैदा करती हैं। मैं व्यक्तिगत स्तर पर सोचता हूं कि क्या मैं खुद के बारे में किसी को कुछ लिखने की अनुमति दूंगा। किसी ऐसे शख्स को भी नहीं, जिसके साथ मेरे काफी व्यक्तिगत संबंध हैं। हर व्यक्ति की जिंदगी उसकी अपनी होती है। आदमी के जिंदगी में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। उसमें लोग जीते हैं, मरते हैं और गलतियां करते हैं। कुछ दिनों पहले आंद्रे अगासी ने बीते वक्त की कुछ बातों को उजागर किया था, जो ठीक नहीं था। लेकिन ऐसा कर क्या व्यक्तिगत जिंदगी को व्यक्तिगत रहने देने के उस पहलू का आप उल्लंघन नहीं कर रहे हैं, जिस पर सभ्यता का अनुशासन और विचारधारा की नींव टिकी है। निष्पाप कोई नहीं होता, शायद भगवान भी नहीं। उसमें किताबों के सहारे किसी की जिंदगी या खुद की जिंदगी को जगजाहिर करना कुछ ऐसा है, जैसे तकिया के चिथड़े उडा़कर रूई को बिखेर देना। बीती जिंदगी तो उस तकिया के सामान है, जिस पर हम अपनी यादों का बोझ आराम से रखकर आगे की जिंदगी सुकून से जीते हैं। उस सुकून में कंकड़ फेंकने की कोशिश कुछ नागवार गुजरती है। किसी की व्यक्तिगत जिंदगी को व्यक्तिगत रहने देने के हम हिमायती हैं। हम किसी के राजदार या हमराज हो सकते हैं, लेकिन उसकी जिंदगी के किस्से को चटखारे लेकर परोसना गलत है। क्यों किसी की जिंदगी को चर्चा का विषय बनाएं? क्यों? मकसद तो सिर्फ एक ही नजर आता है, पैसा और नाम कमाना। निजता का सम्मान सबसे बड़ा सम्मान है। किसी की जिंदगी उसकी अपनी होती है। उसे भी उस अपनी जिंदगी को सरेबाजार नीलाम करने का हक नहीं। अब अगर कोई कर बैठे, तो आंसुओं के सैलाब में खुद को डूबा लें, ये दुखद तो है ही।
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें