वे आफ एक्सप्रेशन एक कला है। किसी चीज को आप कैसे बताते हैं? अभिव्यक्ति, सुंदर अभिव्यक्ति सबके बस की बात नहीं है। लोग कहते काफी कुछ हैं, बस सिर्फ अंदाज काफी कुछ बदल देता है। उस अंदाज में जो बदलाव की शक्ति होती है, वह ये बताने के लिए काफी होती है कि आखिर इस अभिव्यक्ति का उद्देश्य क्या है? टारगेट क्या है? कभी-कभी कोई अपने मन की बात कहने के लिए मौत तक का इंतजार करते रह जाते हैं, वहीं कोई-कोई इस मामले में रनों की झड़ी लगा देते हैं। उनकी बातें लोगों को लुभा जाती हैं। मामला ये है कि आखिर ये गुणवत्ता आती कहां से है? कहां से।
जिंदगी भर तकिये पर आराम से सर टिका कर सोचते रहने से तो नहीं ही आती। थोड़ी बुद्धि भिड़ाइये, तो पायेंगे कि इसके कुछ सूत्र आपके आसपास ही हैं। कभी पानी में छपाक-छपाक की आवाज संगीतकारों के लिए संगीत बन जाती है, तो हमारे लिये सर दर्द... बस मामला वही सोचने भर का है कि कैसे आप सोचते हैं? किस स्तर पर सोचते हैं? हम जो सोचते हैं कि अंततः वही तो हमें अभिव्यक्त करने के लिए प्रेरित करता है। बच्चों से बात करते समय हम बच्चों के स्तर पर सोचते हैं क्या? शायद नहीं। हम बस उन्हें अपनी अवस्था के समकक्ष मानकर अपनी बात मनवाने के लिए बाध्य करते हैं। वहां भी दबिश के सहारे स्वतंत्र अभिवयक्ति को दबाने की कोशिश होती है।
अभिव्यक्ति तो नदी की अविरल धारा के समान है, जिसे यदि रोकने की कोशिश हुई, तो वह प्रदूषित ही होगी। इसलिए उसे रोकना गुनाह है। उसे बहने दीजिए। धीरे-धीरे ही सही, वह जब आकार लेगा, तो उसकी चमक देखकर आप खुद चौंधिया जाएंगे।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हर किसी को मिलनी चाहिए।..
लेकिन इसी स्वतंत्रता का दुरुपयोग जब लोग करने लगते हैं, तो माहौल में ऋणात्मक ऊर्जा का समावेश हो जाता है। लोगों की विचारधारा उलट जाती है। दुनिया बदरंग हो जाती है। मेघ काले हों, तो नहीं बरसने तक डरावने लगते हैं, लेकिन बरसात शुरू हो जाने के साथ हमारा डर खत्म हो जाता और हम उस रिमझिम बारिश में आनंद उठाना चाहते हैं। जिंदगी का मजा लेना चाहते हैं। यही तो भावना, प्रेम या कहें अपने अंदर के दर्शन को जताने का एक बहाना होता है।
फिल्में भी विरह की आग में जल रहे नायक-नायिका के मिलन के लिए इन्ही बरसाती रिमझिम का सहारा लेती हैं। न जाने कितनी बार, कितने तरीके से बारिश के दृश्य फिल्माये गये हैं। अब तो आमिर भी करीना के साथ परदे पर भींगते नजर आये हैं। तूफान मचा है, मचने दो, होने दो, जो होता है, वाला नजरिया इनमें अभिव्यक्त होता है। यानी वही अंदाज सबकुछ बदल देता है। अंदाज हमें भी बदल देता है। कभी थोड़ा-कभी ज्यादा
1 टिप्पणी:
bahut hi sundar abhiwyaqti hai !!! kaafi kuchh sochne ke liye achhi baat!!!
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