जो लोग वन्दे मातरम को लेकर इतना शोर कर रहे है उनमें से किसको "वन्दे मातरम" मुंह ज़बानी याद है??? किसको उसका अर्थ याद है??? भारत के किस शख्स ने "वन्दे मातरम" के अर्थ को अपनी ज़िन्दगी मे उतारा है??? "वन्देमातरम" हो, "जन गण मन" हो, या "सारे जहां से अच्छा" कौन इनके ऊपर अमल कर रहा है??? सबको बस हराम का पैसा चाहिये एक छोटा सा डाकिया भी कोई ज़रुरी कागज़ देने के लिये बीस से तीस रुपये मांगता है और जब भी कोई बेवकुफ़ उलेमा कोई फ़तवा देता है तो यही लोग देशभक्त और देशप्रेमी बनकर खडे हो जाते है गाली देने के लिये!
यहां किसी प्रकार के विवादों से अलग सिर्फ ये सवाल करना है कि आप कैसे पूरे जनसमूह में से या कहें पूरी जमात में से ये सर्वे कर बैठे हैं कि किसे वंदेमातरम, जन गण मन या सारे जहां से अच्छा याद है या नहीं। भाई साहब पूर्वाग्रह को त्यागकर साफ मन से अंदर झांकें, तो पाएंगे कि आप भी इसी मिट्टी के हैं। बाहर से लोग आये लोग जब इस हिंद के हो गए, तो आप तो इस देश के नागरिक है। नाहक विवाद कर अपनी लोकप्रियता बढ़ाने का ये तरीका कुछ जमता नहीं दिख रहा है।
काफी सारे सवाल हैं, काफी जवाब हैं, क्या आप बता सकते हैं या सलाह दे सकते हैं कि हम इस देश में कैसे अमन और शांति बहाल कर सकते हैं। अबू आजमी साहब वहां महाराष्ट्र में हिन्दी के लिए जंग लड़ रहे हैं, तो वे भी इसी देश के नागरिक हैं। हिन्दी मातृभाषा है। उसके अधिकार के लिए एक संघर्ष किया जा रहा है। धर्म, भाषा के विवाद ने इस देश को बर्बाद करके रख दिया है।
हमें तो एक बात जानने की बार-बार इच्छा होती है कि क्या किसी धर्म में ये बताया जाता है कि आप दूसरे पर लगातार दोषारोपण करते रहें। काफी दिनों से देख रहा हूं कि पसंदवाली ब्लागवाणी की सूची में विवादोंवाले ब्लाग की पट्टियां शीर्ष स्थान पर रहती हैं। अब आप ही सोचिये कि ये किस स्तर को इंगित करता है। गुजारिश यही है कि नाहक विवाद पैदा न करें। जिद ना ही करें, तो अच्छा है। क्योंकि हम सब भाई हैं और रहेंगे।
जय हिंद
4 टिप्पणियां:
बिल्कुल ठीक कहा आप ने !
बिलकुल सही कहा आपने एक के लिये सब को दोशी ठहराना सही नहीं है । दुश्मन यही तो चाहता है कि भारत मे अस्थिरता फैलाई जाये । सब जानते भी हैं कि हमे हमेशा एक ही देश मे रहना है तो दोनो पक्षिं को चाहिये कि वाद विवाद मे न पडें। धन्यवाद्
झा साहब ! मेरा यह मानना है की अगर ये लोग इतने ही बड़े देश भक्त है तो जिस तरह पांच लाख फतवे के दिन वहाँ इक्कट्ठा हुए थे, फिर होए और जाकार उन उलेमाओं को बाध्य करे की फतवा वापस ले, पर बात वही है की हाथी के खाने के दांत और दिखाने के और !
बहुत सही लिखा है आपने। सच कहने और लोगों को आईना दिखाने के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया।
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