रविवार, 22 नवंबर 2009

आज भी कंपा जाती है वह रात... (श्रद्धांजलि लेख मृतकों के नाम)


ठीक एक साल पहले, २६ नवंबर की रात ११ बजे काम के बाद घर को विदा होने को थे। शांत रात, सर्द मौसम और सिकुड़ता देह बता रहा था कि शरीर कंबल की गरमी पाने को बेचैन है। तभी न्यूज चैनल पर मुंबई में गोली चलने की आवाज सुनाई पड़ी थी। बस यूं ही उत्सुकता बस मुरिया उठा के देखे कि क्या मामला है? शुरू में मामला सतही लगा। सतही बिलकुल सतही. ये नहीं पता था कि उस गोली की आवाज हिन्दुस्तान के शरीर में नासूर के जख्म देने जा रही है। जिसका दर्द आज तक एक साल के बाद साल रहा है। आधे घंटे बाद घर आया, तो चैनलों पर तूफान मचा था। तूफान, ऐसा तूफान, जिसे आतंकवाद का सुनामी कहें, तो अच्छा होगा। ताज होटल के कोरिडोर और रेलवे स्टेशन पर आतंकियों द्वारा गोलियों की बौछार की खबर धड़कनें तेज कर दे रही थी। पूरी रात या यूं कहें भोर के चार बजे तक पूरी कहानी देखते रह गए। वह काली स्याह रात कभी भी जेहन से नहीं मिटेगी। मन आज भी धिक्कारता है। धिक्कारता है-बार-बार कि इस देश के लोग किस तरह के हो गए। ये दुनिया किस तरह की हो गयी। उसके बाद बयान, पलट बयान का सिलसिला चलता रहा। जो आज तक जरूरी है।

उस रात लिखी गयी मेरी पोस्ट...
मैं आतंकियों की गोली के शिकार हुए लोगों के प्रति श्रद्धांजलि व्यक्त करता हूं। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे


आज मेरा अवकाश था। लेकिन मुंबई में आतंकवादी घटनाओं के बाद दफ्तर में बुला लिया गया। खबरों की बाढ़ और बेहतर अखबार छापने का जुनून हर पत्रकार के चेहरे पर हमसाया था। विचलित मन, कठोर दिमाग और मुट्ठियां भिंचकर पल-पल खबरों की टीवी से जानकारी लेते हुए सब अपने काम में लगे हुए थे। इसी में एक खबर मेरी नजर से होकर गुजरी। आदत के अनुसार सरसरी तौर पर खबर को पढ़ डाला। लेकिन वह सरसरी भरी निगाह एक युवक की मुंबई में मौत की खबर पढ़कर चौकन्नी हो गयी। फिर घबराहट,विकलता और व्याकुलता का दौर १४-१५ मिनट तक दिल और दिमाग पर हावी रहा। क्या करें, क्या नहीं, समझ में नहीं आ रहा था। क्योंकि जिस युवक की मौत हुई थी, वो मेरे परिचित का बेटा था। नाम था मलयेश बनरजी। खुद मेरे गुरु रहे डॉ मान्वेंद्र बनरजी का बेटा था। डॉ बनरजी स्थानीय रांची कॉलेज के ख्यातिप्राप्त शिक्षक हैं। उस लड़के की छह दिसंबर को शादी होनेवाली थी। बुधवार को जब घर में उसकी मौत की खबर मिली, तो कोहराम छा गया। मलयेश एक होनहार युवक था। वह एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर था। अपने माता-पिता की एकमात्र संतान मलयेश काफी तेज छात्र था। उसने आइआइटी खड़गपुर से इंजीनियरिंग और उसके बाद मैनेजमेंट की पढ़ाई की थी। बुधवार को होटल ताज में कंपनी के उच्चाधिकारियों के साथ बैठक करने के बाद मलयेश अपने तीन दोस्तों के साथ होटल के सामने स्थित नरीमन प्लाइंट पर कॉफी हाउस में गया था। इसी बीच अचानक आतंकियों ने अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी। एक गोली मलयेश की जांघ में लग गयी। पहले उसे एक अस्पताल और बाद में जेजे अस्पताल ले जाया गया, लेकिन काफी खून बह जाने के कारण उसकी मौत हो गयी। इस आतंकी हमले ने एक होनहार युवक को हमारे बीच से छीन लिया। इस आतंकी हमले का असर अब हमारे जीवन पर साफ नजर आ रहा है। आज रात मुझे नींद नहीं आयेगी। पिछले ४८ घंटे इसी आत्ममंथन में बीत गये हैं कि इन नेताओं के जुमले सुन-सुनकर क्या हम इसी तरह जीते चले जायेंगे।
इस हमले में जो जवान शहीद हुए और जो निदोॆष मारे गये, उन लोगों की आत्मा की शांति के लिए प्राथॆना करता हूं। प्राथॆना ताज होटल के जीएम और उनके परिवार के लिए भी करता हूं, जिन्हें आतंकियों ने अपनी गोली का शिकार बना डाला। ये आतंक का खेल कब रुकेगा, समझ में नहीं आता। मेरी आंखें भर आयी हैं। अब चाहे इस हमले का हम कितना भी विश्लेषण कर लें, लेकिन उस मां को क्या उसके दो बेटे दिला पायेंगे, जो कि इस हमले में मारे गये हैं। भावनाएं उमड़ रही हैं, लेकिन इन भावनाओं को नियंत्रित करना ही होगा। चलिये शहीदों और मारे गये लोगों की आत्मा की शांति के लिए फिर से प्राथॆना करें।

घर लौटा, तो मलयेश की शादी के काडॆ पर नजर पड़ी। उस काडॆ पर मेरे हाथ स्वतः चले गये। ये उस शादी का काडॆ था, जो कभी नहीं होगी। बस ये याद दिलायेगी कि एक आतंकी हमले ने एक ऐसी जिंदगी छीन ली, जो किसी के घर या किसी मुहल्ले को रौशन करता था। पता नहीं.... इस देश के लोगों को क्या-क्या झेलना होगा।

1 टिप्पणी:

Udan Tashtari ने कहा…

उस रात का सोच कर भी वाकई कंपकंपी हो जाती है.