माया सभ्यता के कैलेंडर के हिसाब से २०१२ में दुनिया का खात्मा हो जायेगा। हालीवुड में एक फिल्म इसी पर बनी है। दहशत, विनाश और सृष्टि के खात्मे की कहानी रोमांचित करती है। हम कल्पनाएं करते हैं, डरते हैं और एक डर को जीते रहते हैं। हमारे भीतर का डर हमें हमेशा से आगे बढ़ने से रोकता है। फिल्मों के सुपर हीरो हमें विनाश से बचाते रहे हैं।
८०-९० का दौर एलियंस से भयभीत रहनेवाला दौर था। न जाने कितने रिसर् पेपर प्रस्तुत हो गए होंगे। हर पत्रिका में एलियंस या कहें अंतरिक्ष से आये लोगों के बारे में लेख मिला करते थे। हम डरते रहे। इस पर भी हॉलीवुड में फिल्में बनीं और धरती को बचाने की कसमें खायी जाती रहीं। हमारे फिल्मकारों ने हमारे भय को समझ लिया है, खासकर हालीवुडवालों ने। उन्होंने इसका एक विशेष बाजार बनाया है और उस पर करीब एक हजार करोड़ की लागत तकवाली फिल्में बना रहे हैं।
चैनल माया कैलेंडर के हिसाब से विनाश की कहानी उकेर कर अपनी टीआरपी बढ़ाते चलते हैं। ये तो हम भी नहीं जानते कि कब क्या होगा? लेकिन जब माया कैलेंडर के हिसाब से दुनिया २०१२ में खत्म हो जाएगी, तो उसके हिसाब से डर की अनोखी दुनिया स्वतः तैयार हो रही है। डर की जिंदगी जीते हम घुप्प अंधेरे में २०१२ की त्रासदी देखेंगे। जिन लोगों ने सुनामी देखा या महसूस किया होगा या मुंबई की बरसात को झेला होगा, उनके लिए वह फिल्म रिएलिटी के करीब होगी। लेकिन प्रकृति या नेचर की इस दुश्मनी के लिए क्या हम जिम्मेवार नहीं हैं, क्या हमें भी खुद को दोषी नहीं मानना चाहिए। हमने पूरी सृष्टि की काया को पलटने की जोर लगा रखी है। प्रकृति के साथ छेड़छाड़ इस कदर है कि अंटार्कटिका जैसे प्रदेश पर खतरा मंडरा रहा है।
मौत के करीब पहुंचती हमारी जिंदगी सभ्यता के विनाश की कहानी को नहीं झेल सकती है। वह इस माया के साथ जिंदा रहना चाहती है कि उसकी समृद्धि को उसके पोते-परपोते भोगें। लेकिन मेरा मानना है कि भगवान ने इस प्रकृति या सृष्टि को क्षमा करने की अनोखी क्षमता है। वह हमारी हर गलती को क्षमा करती रही है। २०१२ की फिल्मी कहानी फिल्मी ही रहेगी और हम ऐसे ही जीते रहेंगे। हमारा यही मानना है, डर की दुनिया को बाय-बाय करने से पहले हम तो यही बोलेंगे-डरना मना है।
4 टिप्पणियां:
इसी डर के कारण मैं अपने कुछ जरूरी काम पहले ही निपटा लेना चाहता हूं ताकि बाद में अफसोस न हो।
प्रभात जी Daर की कहानी सूना कर काहे दारा रहे हैं???
@ashish-dara nahi rahe hai, kah rahe hai-darna mana hai...
अच्छा ये जब 2012 में दुनिया ख़त्म होगी तो ये जो बेईमान नेता हैं, भ्रष्ट अफ़सर, निकम्मे सरकारी कर्मचारी और मिलावट करने वाले जमाखोर व्यापारी हैं..... ये सब भी ख़त्म हो जाएंगे क्या? अगर हां, तब तो ठीक है, इस दुनिया को ख़त्म ही हो जाना चाहिए.
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