गुरुवार, 18 सितंबर 2008

लालच कम कर जीना ही है बेहतर

आज खबरें आयीं कि शेयर मारकेट में मची हलचल के कारण दो-तीन लोगों ने आत्महत्या कर ली। दिल्ली में ही इएमआइ के बढ़ते दबाव के कारण आत्महत्या की खबरें आती रही हैं। इन सबके पीछे कारण बस वही पैसे के लिए बढता दबाव ही है। आज हर चीज के लिए लोन आसानी से मिल जाता है। आप मस्त होकर थोड़े-थोड़े पैसे देकर अपना कजॆ चुका सकते हैं। बात सिंपल जान पड़ती है। लेकिन आंख मूंद कर घी पीने की इस आदत ने सोसाइटी का विनाश करके रख दिया है। कम समय में ज्यादा पाने की चाह जिंदगियां बरबाद कर दे रही हैं। इसी कारण करप्शन का बढ़ना और सिस्टम का खोखला होना जारी है। गांव-देहात में सुबह चिड़ियों की चहचहा़ट से शुरू होती जिंदगी शाम में प्रभु के ध्यान में खत्म होती थी। पर अब सबकुछ खत्म हो गया है। पैसे की आमद कम है, पर ख्वाहिशें ऐसी कि सामनेवाला मुरीद बन जाये। कल का श्याम आज सैम कहलाना पसंद करता है। हर किसी को चाहिए रेडियो की जगह इयरफोन, पंखे की जगह एसी और अखबार की जगह लैपटॉप। हौले-हौले ज्यादा चाहत का धीमा जहर ऐसा सोसाइटी में घुस रहा है कि अब गिरे कि तब गिरेवाली स्थिति हो गयी है। वैसे में शायद लालच कम कर जीना ही बेहतर है। अपने जीवन को सादगी से जीना जरूरी है। इसलिए कम टेंशन लें, सुखी जीवन जियें।
वैसे भी कहा गया है

चिंता से चतुराई घटे, दुख से घटे शरीर
पाप से धन-लक्ष्मी घटे, कह गये दास कबीर

2 टिप्‍पणियां:

रंजन राजन ने कहा…

मुद्दा अत्यंत सामियक और िटप्पणी अत्यंत सटीक।

अनूप शुक्ल ने कहा…

टेंशन कम हो गया। लेकिन आप अपना वर्ड वेरीफ़िकेशन हटा लें।