बुधवार, 17 सितंबर 2008

बंद हों बच्चों के रिएलिटी शो

खबर आयी है कि सरकार बच्चों के रिएलिटी शो को बंद करने का निर्देश दे सकती है।

याद करिये, रिएलिटी शो में एक लड़की के सदमे में चले जाने की घटना को। टीवी एक सावॆजनिक मंच मुहैया कराता है। यहां प्रतिभागी सीधे देश के सामने अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करते हैं। चुनौती, दबाव चरम पर रहता है। वैसे में जजों द्वारा भी जैसी सख्त टिप्पणियां की जाती है, वह सामान्य आदमी की सोच से बाहर की होती है।

किसी जज का गुस्सा कर शो से बाहर चले जाना, किसी प्रतिभागी को बुरी तरह डांटना, तो किसी को उसकी कमजोरी को खराब तरीके से बताना, आज के रिएलिटी शो के अंग बन चुके हैं। ये शायद ऐसा इसलिए करते हैं, क्योंकि मसालेदार शो चर्चा का विषय बन जाता है। और इससे शो बनानेवालों को फायदे ही फायदे हैं। शो में इतना पैसा लगा होता है कि आयोजक किसी भी तरह इसे हिट कराने का फारमूला ढूढ़ते रहते हैं। इन दिनों एक शो में तो युवा प्रतिभागी आपस में इतनी बुरी तरह विवाद करते हैं कि कोई भी सभ्य नागरिक उसे देखना पसंद नहीं करेगा। ऊपर से रिएलिटी शो में बच्चों को पूरी प्रतियोगिता के दौरान अविश्वसनीय दबाव झेलना पड़ता है।

शुरुआत में रिएलिटी शो में विनम्रता, सादगी और सम्मान को तरजीह दी जाती थी। लेकिन आज की गला काट प्रतियोगिता में चैनल सारी हदों को पार कर सिफॆ टीआरपी के लिए इन बच्चों को स्वाथॆसिद्धि का माध्यम बना रहे हैं। आज इतनी प्रतियोगिताएं हैं कि शायद ही किसी विजेता को ज्यादा दिनों तक याद रखा जाता है। कुछ महीनों के बाद ये विजेता भी गुमनामी के अंधेरों में फिर खो जाते हैं।

बंबईया नगरी का सपना किसी नहीं लुभाता। चमक-दमक, लाइट-साउंड किसे नहीं भाता। पर इस रोशनी के बाहर छाये अंधेरे को देखने की हिम्मत शायद हममें नहीं है। ठीक है, ये रिएलिटी शो बच्चों को एक खास मौका देते हैं, लेकिन लाखों अभिभावकों में एक झूठी तमन्ना भी जागृत करते हैं। वैसे में जो जीत गया, वह तो सिकंदर हो जाता है, पर जो बाहर रह गये, उनके लिए सिफॆ सपना।

रिएलिटी शो में रियल विजेता एसएमएस की होड़ में शायद पीछे ही रह जाते हैं। एक बात और गौर करनेवाली है कि इन रिएलिटी शो ने क्षेत्रवाद को भी बढ़ावा दिया है। जनता को जिताने का अधिकार तो होता है, पर ये जनता इलाकों में बंटकर अपने क्षेत्र के प्रतिभागी को ही ज्यादा वोट देने की कोशिश में रहती है। वैसे में जो सही और टैलेंटेड प्रतिभागी होता है, वह एलिमिनेट हो जाता है। उससे सही टैलेंट को मारकेट में जगह नहीं मिल पाती है।

साफ शब्दों में ये रिएलिटी शो एक शाटॆ कटॆ रास्ता दिखाता है। इंदौर में एक युवक दुस्साहस के कारनामे दिखाते हुए अस्पताल जा पहुंचा था। कोई भी शो या सीरियल मानव जीवन और सामाजिक सरोकारों से समझौता करते हुए नहीं चल सकता है। उसमें भी कम उम्र के बच्चों का रिएलिटी शो तो कतई नहीं। वैसे भी पानी सिर से ऊपर बह रहा है। सरकार को ठोस कदम उठाने ही चाहिए।

1 टिप्पणी:

अनूप शुक्ल ने कहा…

एस.एम.एस. शो है ये तो। रियलिटी शो कहां होता है। वर्ड वेरीफ़िकेश हटा लें तो अच्छा है।