यहां दरिया में आग लगी है और पूछते हो कि ये बोलनेवाले कौन हैं। शायद यही हाल है कि हमारे नेताओं का। उन्होंने गुस्साये लोगों के खिलाफ भड़ास निकालने का यही तरीका अपनाया है कि कुछ भी बोल दे रहे हैं। सुना है कि नकवी साहब ने माफी भी मांग ली है। लेकिन भाई ये कहां का सिस्टम है कि आप टाइ-कोटॆ पहनने और लिपिस्टिक लगाने पर आपत्ति जताना शुरू कर दें। शायद अब नकवी साहब के हिसाब से धोती-कुरता और साड़ियों में ही सिफॆ भारतीय होने का मुहर लग पायेगा।
आज पूरी जमात गुस्से में है। गुस्से में क्यों नहीं हो, दो सौ जाने आतंकी आकर सरेआम ले लेते हैं और तीन सौ को घायल कर देते हैं। मुंबई शहर और पूरा सिस्टम असहाय हो जाता है। इसके बाद यदि जनता में से सात लोग ही एक जगह खड़े होकर मोमबत्ती जलाते हुए सिस्टम को चलाने का रौब झाड़नेवाले नेताओं से सवाल-जवाब करते हैं, तो इसमें आपत्ति की क्या बात है? आतंकी ताज होटल को इतना नुकसान कर गये हैं कि उसकी भरपाई करने में सालों लग जायेंगे। विनाश का खेल आंखों के सामने हैं। किसी का बाप सर पीट रहा है, तो किसी की मां की आंखों से आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। आक्रोश, दुख और हताशा का ऐसा समन्वय भारतीय इतिहास में शायद ही कभी देखा गया होगा। उसमें अगर लोगों में गुस्सा उबाल पर है, तो गलत क्या है? रोम जल रहा था, तो नीरो बांसुरी बजा रहा था। आज ये देश जल रहा है, तो ये नेता शायद यही कर रहे हैं। इस्तीफे की नौटंकी कर कितनी जानें और कितने घायलों के ददॆ को ये नेता समेट सकेंगे।
नकवी साहब हमारी तो ये सलाह है कि अगर आप शिकायतों और आपत्तियों को सुनने की हिम्मत नहीं करते हैं, तो फिर राजनीति करना छोड़ दें। अब देश में कोई नकवी साहब के हिसाब से शोक मनाने के लिए नहीं जायेगा। एक अकेला आदमी भी चाहे तो विरोध जता सकता है, कहीं भी।
भाई नकवी साहब, आक्रोश को समझिये, ठंडे दिमाग से। अभी जनता गुस्से में है। आपसे नहीं,इस सिस्टम से, जिसे आपकी पाटीॆ भी पाने की कोशिश में लगी हुई है। वैसे नकवी साहब की छवि एक साफ-सुथरी नेता की रही है। अगर वे अपना संतुलन खो रहे हैं, तो दूसरे नेताओं से तो मीडिया दूर से ही बात करेगी।
3 टिप्पणियां:
बांसुरी बजा रहे हें वह भी बेसुरी!
घुघूती बासूती
साफ सुथरे नेता..? हुंह।
aisa kya kaha diya nakvi jee ne. narayan narayan
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