गुरुवार, 25 दिसंबर 2008
टूटते रिश्तों की डोर संभालना जरूरी
हमारे रिश्ते में एक व्यक्ति का बेटा दूर दिल्ली में रहता है। बातचीत में किसी ने कहा-भाई, उसने तो खुद शादी कर ली। बिहार और झारखंड में उतना खुलापन नहीं रहने के कारण हम इन बातों को सहज में नहीं लेते। क्योंकि अब तक भी हम यहां अंतरजातीय विवाह या कहें खुद के चुनाव से मान्यता देने में हिचक महसूस करते हैं। वैसे इन दिनों इस मामले ने जोर पकड़ा है और काफी लोग इसके पक्षधर हैं। बात यहां बच्चों द्वारा माता-पिता से दूर रहकर उनसे दूरी बनाकर खुद के जीवन के फैसले लेने को लेकर है। आज की पीढ़ी ज्यादा स्वतंत्र है। उनके पास जीने के लिए वह सबकुछ है, जो एक आम आदमी को चाहिए। इस क्रम में समाज में खुलापन के नाम पर एक ताजी हवा भी बह निकली है। इस क्रम में खुद से लिये जानेवाले फैसलों ने माता-पिता, चाचा-चाची को अलग-थलग कर दिया है। उन्हें खुद के बेटे या भतीजे पर विश्वास नहीं है और न रह गया है। वे हमेशा एक अनिश्चितता का भाव लिये जीते रहते हैं। आज के ज्यादातर युवा महानगरों में नौकरी के लिए जाने को मजबूर हैं। इस कारण उनका घर से संपकॆ काफी कम रहता है। टेलीफोन पर बातचीत होती तो है, लेकिन मन की दूरी बढ़ गयी होती है। इस मामले ने सामाजिक समीकरणों के जिस ताने-बाने को बिगाड़ा है, उसने काफी हद तक निरंकुशता को बढ़ावा दिया है। क्या ये संभव नहीं है कि युवा नागरिक खुद के फैसले लेने से पहले माता-पिता को भी अवगत करा दें और उनकी अनुमति से ही पहल करें। शायद ये व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर हमले जैसा होगा, लेकिन मेरा मानना है कि इससे टूटते सामाजिक ताने-बाने को रोकने में मदद मिलेगी। वैसे आज की पीढ़ी खुद ही काफी समझदार है।
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5 टिप्पणियां:
बहती बदलाव की हवा है ..बच्चे अब ख़ुद को इस मामले में अधिक समझदार समझते हैं ..सही लिखा आपने
माता - पिता को भी बच्चों में इतना भरोसा पैदा करना चाहिए कि वे अपनी बात कह सकें और अपने फ़ैसलों में उन्हें शामिल कर सकें । जब अविश्वास की दीवार खडी होती है , तब ही इस तर्ह के कदम उठाए जाते हैं । पहल अभिभावकों को ही करना होगी ।
खुद के फैसले लेने से पहले माता-पिता की अनुमति तो लेनी ही चाहिए.....पर यह तभी संभव है , जब माता पिता बच्चों पर अपना विश्वास बनाए रखें और बच्चे माता पिता पर।
कोई काम सबकी सहमति से हो उससे अच्छा क्या होगा भला ?
वैसे आज की पीढ़ी खुद ही काफी समझदार है।
बहुत सही बात कही है आपने...आज की पीढ़ी जानती है की वो क्या कर रही है..बुजुर्गों को उनके विचारों का सम्मान करना चाहिए...सारगर्भित पोस्ट है आपकी.
नीरज
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