बुधवार, 17 दिसंबर 2008
क्या आपने हंसी चिड़ियां देखी है?
क्या आपने हंसी नामक चिड़ियां देखी है? यह सवाल इसलिए कि लोगों की मुरझायी, पथरीली और उदासीन आंखों में मुझे उस उल्लास, उमंग की तलाश है, जो इस हंसी चिड़ियां को देखने से आती होगी। हंसी नाम की चिड़ियां न भी हो, तो भी कम से कम कोयल की कुक तो सुनने को मिल ही जाये। सुनते हैं कि कोयल की कुक सुनकर मन शांत और साफ हो जाता है। मेरे घर की चारों ओर कंक्रीट के जंगल हैं, पेड़ तो हैं नहीं। न तितलियां आती हैं, न कोयल और न मैना। कहते हैं या पढ़ता आया हूं कि मानव सभ्यता ने काफी तरक्की की है। लेकिन इस मानव को खुद के बनाये शीशे के घर को हमेशा पत्थर से बचाने की फिक्र लगी रहती है। मुझे लगता है कि ६० फीसदी लोगों ने सुबह का सूरज कई सालों से न देखा होगा। क्या इस घोर जंजाल में हंसी नाम की चिड़ियां मिलेगी? मैं हर दिन उन दो-चार बच्चों से मिलता हूं, जो अनाथ हो चुके होते हैं। उनकी सुनी आंखों में उस उल्लास और निश्छल प्रेम को खोजता हूं, जो आज कहीं खो गया है। मशीनी जिंदगी में दादा-दादी को पोते-पोतियों के साथ खेलने की आस को धुएं में खोता देखता हूं। सुना है, हम तरक्की कर गये, लेकिन ये कैसी तरक्की है, जिसने हंसी नाम की चिड़ियां को जिंदगी से दूर कर दिया है। सुना है, ऐसे-ऐसे हथियार हैं, जो एक बार में हजारों गोलियां बरसाते हैं। लेकिन ऐसे हथियार अब तक क्यों नहीं बने, जिनसे हंसी की फुलझड़ियां निकलती हों। मुंबई पर हमले के बाद भी मैंने हंसी नाम की चिड़ियां की काफी खोज की। लेकिन लगता है, वो हमसे रूठ गयी है। ये दिसंबर महीना भी बीतने को है। साल खत्म हो जायेगा। क्या अगले साल हंसी नाम की चिड़ियां मिलेगी?
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4 टिप्पणियां:
जो हंसी है न, वो तो मन के भीतर है. उसे बाहर खोजते ही क्यों हैं? हंसी एक मुक्ताकाश का दर्शन है, वो खिड़कियों से दिखेगी ही नहीं.आंखों के पार है वो.
पोस्ट अच्छी थी. अच्छा लगा पढ़कर. धन्यवाद.
यह तो अपने भीतर से ही तलाशिनी होगी ..अच्छा लिखा है आपने
अंदर हँसी बची होती तो बाहर की कैसे गायब हो जाती .
अच्छा लगा पढ़कर.लोगों ने ठीक ही तो कहा है. "यह अंदर की बात है" धन्यवाद.
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