गुरुवार, 11 दिसंबर 2008
मुरगे की टांग, अपशगुन और मेरी जिंदगानी
भाई मानिये या न मानिये ब्लागिंग के चक्कर में बाहरी दुनिया से कट सा गया था। संयोग से घर में भी काफी दिनों बाद अकेला था। वैसे नौकरी और घर के चक्कर में किसी प्रकार समय निकाल कर ब्लागिंग कर ही लेता हूं।
इस नशे का क्या कहें, जो हमेशा कुछ पोस्ट डालने के लिए कुनमुनाता रहता है। इधर पिछले दो हफ्तों से मुंबई और आतंक, इन्हीं दो शब्दों ने जिंदगी और सोच का ताना-बाना गड़बड़ा दिया था। गुरुवार को अवकाश रहता है। इसलिए इस बार सोचा जमकर मस्ती की जाये।
११ बजे उठा, मुंह धोया और कुछ देर आदतन ब्लागिंग करने के बाद चला गया मेन रोड। मानिये या न मानिये काफी मस्ती का मूड था। सोचा अकेला हूं, मुरगे की टांग तोड़ी जाये। लेकिन दिमाग में ऐसी कोई जगह नजर नहीं आ रही थी, जहां जाकर मजा लिया जाये मुरगे की मसालेदार टांग का। वैसे बडॆ फ्लू के चक्कर के बारे में फिर सुन रहा हूं। एहतियातन पहले इन खबरों के कारण मुरगे की टांग तोड़ने पर परिवार में रोक लगा दी जाती है।
लेकिन जीभ था कि मान ही नहीं रहा था।
मेन रोड में ही एक जगह खुले में मुरगे की टांगों के मसालेदार तरीके से पकाया बनाया जाता है। कभी बाहर के खाने में इन्फेक्शन के डर से खाता नहीं था, लेकिन इस बार जीभ ने दिल को मात दे दी। और २५ रुपये में रोटी और मुरगे की टांग तोड़ने के लिए बैठ गये। ओह क्या जायका था.... वैसे मेरे हिसाब से फाइव स्टार में बैठकर भी ऐसे खाने का आनंद नहीं ले पाइयेगा। वहां एक मित्र भी मिल गये। उन्हें भी बैठा लिया था।
अब खाते-खाते दिन के तीन बजे। निकल पड़े स्कूटर पर घर के लिए। पर रास्ते में एक बूढ़े रिक्शेवाले गये टकरा। गिरते-गिरते बचे। लगा, बेचारे मुरगे की नजर लग गयी। याद आया, पिछले सप्ताह एक सीनियर ने समझाया था, शनिवार और मंगलवार को दाढ़ी मत काटना, हनुमान जी नाराज हो जाते हैं। लेकिन हमने कहा, भाई स्माटॆ बनना मेरी फितरत है। बिना शेविंग किये मैं नहीं रहता। लेकिन उस रिक्शेवाले के अड़ंगा डालने के बाद सोचा, कहीं दाढ़ी काटने और मुरगे की टांग को गुरुवार को खाने के कारण जीवन का गणित तो नहीं गड़बड़ा रहा। फिर क्या था, कुछ देर तक सोचते रहे। फिर सोचा, चलो आधा दिन तो बीत गया, अब आगे देखा जायेगा।
शाम को बनवाया आमलेट दुकान पर और ब्रेड के साथ भोजन कर दूध पी बैठ गया ब्लाग लिखने। इस समय साढ़े नौ बज रहे हैं। दो घंटे बाद सोने चला जाऊंगा।
मुरगे की टांग की बुरी नजर को हिम्मत और दरियादिली से हरा दिया। किसी ने सच ही कहा है पोजिटिव थिंकिंग से कुछ भी जीता जा सकता है। इसलिए अगली बार अवकाश में बिना किसी नजर या अपशगुन की परवाह किये फिर मजे लूंगा मुरगे की मसालेदार टांग का।
निवेदन- कृपया नानवेज खानेवाले ही पढ़ें
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
7 टिप्पणियां:
:);)bahut badhiya post
वाह!
मुरगे की टांग तो आपने खा ली।
अब अगली बार
पूरे मुर्गे पर हाथ साफ करने का इरादा बनाए
और एक नयी पोस्ट इस ब्लोग पर सजाए।;)
sahi hai guru.. :)
"ब्लागिंग के चक्कर में बाहरी दुनिया से कट सा गया था।" - लो लग गया रोग!
और नानवेज वाली चेतावनी लेख के शुरू में देनी थी :)
रिक्शेवाले का क्या हुआ ? मुर्गे का तो खैर नहीं पूछूँगी ।
घुघूती बासूती
अगले जनम में मुरगा बनेंगे...कहे देता हूँ। हॉं नी तो। :))
सोचता हूँ की गर रोज लिखोगे तो कितने मुर्गे हलाल होगे ???
एक टिप्पणी भेजें