रविवार, 14 दिसंबर 2008

अनुनाद जी आपकी बात मन को छू गयी

कभी-कभी कोई टिप्पणियों में कही गयी बातें मन को छू जाती है। चलिये हिंदी ब्लागिंग को श्रेष्ठ बनायें शीषॆकवाली पोस्ट में अनुनाद सिहं जी ने काफी गंभीर, ध्यान खींचनेवाला और सामयिक टिप्पणी की है। ये गंभीर बातें टिप्पणियों की भीड़ में खो न जायें, इसलिए मैंने इसे इसे पोस्ट के रूप में डालना उचित समझा। सोचता हूं कि ये बातें वृहद् स्तर पर लोगों के सामने आनी चाहिए। अनुनाद जी की टिप्पणी काफी बेहतर,मागॆदशॆन करनेवाली और हिन्दी ब्लाग जगत की बेहतरी के लिए है।

उन्होंने कहा था-

आपने बहुत ही महत्व का विषय उठाया है; इसके लिये साधुवाद।

किन्तु मेरे खयाल से आप हिन्दी ब्लागजगत को श्रेष्ठतर बनाने के लिये आवश्यक सबसे महत्वपूर्ण बाते नहीं कह पाये हैं। इस सम्बन्ध में मैं आपसे अलग विचार रखता हूँ ।

मेरा विचार है कि हिन्दी ब्लागजगत में विषयों की विविधता की अब भी बहुत कमी है। ज्यादातर 'राजनीति' के परितः लिखा जा रहा है। तकनीकी, अर्थ, विज्ञान, व्यापार, समाज एवं अन्यान्य विषयों पर बहुत कम लिखा जा रहा है।

दूसरी जरूरत है आसानी से सहमत न होने की। इमर्शन ने कहा है कि जब सब लोग एक ही तरह से सोचते हैं तो कोई नहीं सोच रहा होता है। उसने यह भी कहा है कि हाँ-में-हाँ मिलाना सभ्यता के विकास में सबसे बड़ी बाधा है। जब तक सम्यक प्रकार से विचारों का विरोध/अन्तर नहीं होगा तब तक न नये विचार जन्म लेंगे न विचारों का परिष्कार होगा।

हाँ एक चीज और जरूरी है कि जो लोग अब भी अंग्रेजी में लिखने का मोह नहीं त्याग पा रहे हैं, उन्हे हिन्दी में लिखने के लिये निवेदन किया जाय, उकसाया जाय, प्रेरित किया जाय|

4 टिप्‍पणियां:

संगीता पुरी ने कहा…

ये गंभीर बातें टिप्पणियों की भीड़ में खो न जायें, इसलिए मैंने इसे इसे पोस्ट के रूप में डालना उचित समझा।
सही किया।

अजित वडनेरकर ने कहा…

सही सही। फिलहाल तो हिन्दी ब्लागिंग में कई तरह की धाराएं चल रही हैं। मगर कोई गंभीर तस्वीर अब तक नहीं बन पाई है।

बेनामी ने कहा…

That's a great blog! Good Job!

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डॉ .अनुराग ने कहा…

सच ही तो कहा उन्होंने .....असहमतिया इसलिए भी आवश्यक है ये लेखन में संतुलन बनाये रखती है .ओर उस डोर को खीचे रखती है जिसके जरा सा ढीला होते ही लेखक आत्म मुग्धता के पलडे में झुक जाता है