रविवार, 7 दिसंबर 2008

एसएमएस के गुलाम होते लोग


सामने चाय रखी हो और आप पीने की इच्छा रखते हों, तो आप पीयेंगे जरूर। सामने मोबाइल रखी हो, तो क्या आप मोबाइल पर उंगलियां टिपियायेंगे नहीं? करेंगे ही,कमबख्त ये आदत ही ऐसी है कि किसी प्रोग्राम में एमएसएस के लिए अपील देखी नहीं की, शुरू कर देते हैं टिपियाना। इस टिपियाने के नशे ने औसत आदमी की आमदनी का बेड़ा गकॆ करके रख दिया है। जब तक उसके मन का लाल बटन उसे ऐसा करने से रोकता है, वह एसएमएस कर चुका होता है।

पहले पत्र लिखते समय, न जाने क्या-क्या चिंतन, भाषा और छंदों का इस्तेमाल होता था, लेकिन इस शॉटॆ मैसेज सरविस ने उन सारी कलाओं को मृत कर दिया। धन्य हो ये ब्लॉग जगत, कम से कम लेखनी, वह भी खुल कर लेखनी को इसने ऐसे मुकाम पर पहुंचा दिया है, जहां से अब सिफॆ सूयॆ का उदय दिखता है।

करोड़ों के खेलवाले एमएमएस गेम को समझने काफी आसान है। आधा तेरा और आधा मेरा की तजॆ पर चैनलवाले एसएमएस करवाते हैं। घाटा तो दशॆकों का ही होता है। यहां तक शहादत जैसी बातों में भी शोक जताने के लिए एसएमएस कराये जाते हैं। लोग जताते भी हैं। पांच-सात रुपये का खचॆ ज्यादा नहीं लगता। लेकिन किसी-किसी के लिए ये जैसे नशा जैसा हो गया है। आखिर तत्काल सेवा के जमाने में इच्छा पर नियंत्रण जैसी चीज को बेमानी कर दिया है। इसलिए आगे से भाई अगर एसएमएस करने जाओ, तो दो ग्लास पानी जरूर पी लेना कि कहीं सही जगह तो करने एसएमएस करने जा रहे हो।

4 टिप्‍पणियां:

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बहुत सामयिक व बढ़िया विचारणीय पोस्ट लिखी है।धन्यवाद।

pritima vats ने कहा…

बहुत सही लिखा है आपने आजकल हम सोचने से पहले एसएमएस कर चुके होते हैं.

डॉ .अनुराग ने कहा…

ठीक कहा है ,पर अब लोग भी समझने लगे है इस खेल को !

Scrappur ने कहा…

Great to See Ranchi People Blogging On Internet .