शनिवार, 13 दिसंबर 2008

चलिये हिन्दी ब्लागिंग को श्रेष्ठ बनायें

मेरा ब्लाग से परिचय अपने घनश्याम जी (घन्नू झारखंडी जी) www.jharkhandighanshyam.blogspot.com के माध्यम से हुआ। नेट, जो दो-तीन साल पहले तक अंगरेजी के जानकारों तक ही सीमित था, उसकी हिन्दी में उपलब्धता को देखकर एक सुकून और आनंद की लहर दौड़ पड़ी थी। ब्लाग बनाने के चक्कर में न जाने कितने घंटे गुजारे। अखबार में काम करता हूं। डेस्क पर हूं। लिखने से ज्यादा लिखी चीजों को छांटने-काटने का काम करता हूं। ब्लॉग को देखकर लगा कि कम से कम इसमें अपने विचारों और मन की उड़ान को जगह मिल जायेगी। मिली भी, अब पांच महीने होने को हैं, लगातार लिख रहा हूं।

लेकिन इस ब्लागिंग की दुनिया में वैसा कोई मापदंड नहीं है, जिससे किसी रचना की श्रेष्ठता मापी जा सके। अगर कहें कि टिप्पणी को मापदंड माना जाये, तो वैसे में जिस ब्लॉग से सबसे ज्यादा लोगों का भावनात्मक लगाव होता है, उन्हें ज्यादा टिप्पणियां मिलती हैं। ऐसे में भावना के जुड़ जाने से ये मापदंड खत्म हो जाता है। यहां मेरे हिसाब से प्रयास लोगों को बेहतर लेखन की ओर अग्रसर होने के लिए प्रेरित करने की है। लिखने के साथ-साथ ज्यादा पढ़ने, जानने और खुद को बेहतर करने की कोशिश हो।

ऐसा न हो कि अगर पाकिस्तान के खिलाफ आग उगलने की बात हो, तो आप-हम उन सारी गंदी चीजों की उलटी करें, जो हमारी सामान्य जिंदगी में नहीं होना चाहिए। ब्लॉग को एक स्वस्थ मंच बनाने की दिशा में पहल होनी चाहिए। कुछ ऐसा हो, जिसका हम सब पालन करें।

जैसे- किसी प्रकार की अनचाही और गलत बातों को टिप्पणी में न डालें
दूसरों के प्रति संबोधन में उनकी इज्जत का ख्याल करें
दूसरों के व्यक्तिगत जीवन का उल्लेख करने से पहले उनकी सहमति ले लें।
दूसरे लोगों को अच्छा और बेहतर लिखने के लिए प्रोत्साहित करें
खुद को बेहतर बनाने की कोशिश हो, लगातार


हमारा मकसद किसी व्यक्ति विकास केंद्र की स्थापना का नहीं है, बल्कि अपनी सोच को ऐसी धार देने की है, जिससे हिन्दी ब्लागिंग पर भी श्रेष्ठता का मुहर लग सके। ज्यादातर बातचीत में महसूस होता है कि ब्लाग जगत के बारे में लोगों में अच्छी राय नहीं है। लोगों का कहना है कि ब्लाग जगत आक्षेप और निंदा की जगह हो गयी है। लेकिन अगर हम प्रयास करें, तो इसे सुधार सकते हैं। पिछली एक पोस्ट में भी मैंने इन बातों का उल्लेख किया था।

ब्लाग को मन की डायरी है। इसमें हमारा पूरा स्वरूप झलकता है। इसलिए इस आईने को कम से कम साफ-सुथरा रखना हमारा कतॆव्य है। जिससे जो भी एक बार यहां आये, यहां का होकर रह जाये।

4 टिप्‍पणियां:

Gyan Darpan ने कहा…

आपके विचारों से सहमत हूँ

अनुनाद सिंह ने कहा…

आपने बहुत ही महत्व का विषय उठाया है; इसके लिये साधुवाद।

किन्तु मेरे खयाल से आप हिन्दी ब्लागजगत को श्रेष्ठतर बनाने के लिये आवश्यक सबसे महत्वपूर्ण बाते नहीं कह पाये हैं। इस सम्बन्ध में मैं आपसे अलग विचार रखता हूँ ।

मेरा विचार है कि हिन्दी ब्लागजगत में विषयों की विविधता की अब भी बहुत कमी है। ज्यादातर 'राजनीति' के परितः लिखा जा रहा है। तकनीकी, अर्थ, विज्ञान, व्यापार, समाज एवं अन्यान्य विषयों पर बहुत कम लिखा जा रहा है।

दूसरी जरूरत है आसानी से सहमत न होने की। इमर्शन ने कहा है कि जब सब लोग एक ही तरह से सोचते हैं तो कोई नहीं सोच रहा होता है। उसने यह भी कहा है कि हाँ-में-हाँ मिलाना सभ्यता के विकास में सबसे बड़ी बाधा है। जब तक सम्यक प्रकार से विचारों का विरोध/अन्तर नहीं होगा तब तक न नये विचार जन्म लेंगे न विचारों का परिष्कार होगा।

हाँ एक चीज और जरूरी है कि जो लोग अब भी अंग्रेजी में लिखने का मोह नहीं त्याग पा रहे हैं, उन्हे हिन्दी में लिखने के लिये निवेदन किया जाय, उकसाया जाय, प्रेरित किया जाय|

प्रवीण त्रिवेदी ने कहा…

आपसे सहमत हूँ पर अनुनाद जी ने जो विषय उठाया है उस पर एक बात कहना चाहूँगा की आज भी ब्लॉग्गिंग कहीं न कहीं मन की भडास मिटाने का बड़ा औजार बना हुआ है , अतः यह विविधता कहीं न कहीं राजनीति के भंवर में फसती हुई दिखाई दे जाती है !!!!





प्राइमरी का मास्टर का पीछा करें

Dr. Ashok Kumar Mishra ने कहा…

अच्छा िलखा है आपने । मैने अपने ब्लाग पर एक लेख िलखा है -आत्मिवश्वास के सहारे जीतें िजंदगी की जंग-समय हो तो पढें और कमेंट भी दें-

http://www.ashokvichar.blogspot.com