मंगलवार, 23 दिसंबर 2008
नयी पीढ़ी और पुरानी पीढ़ी, ये फासला क्यों?
क्या किसी लंबे सफर पर जाने के समय हमेशा उत्तेजना या कहें उल्लास को कायम रखा जा सकता है? क्या किसी सृजन के लिए लंबा समय नहीं चाहिए। क्या कोई भी प्रतिमा या कहें रचना कुछ पलों में तैयार हो सकती है। नहीं, कभी नहीं। ऐसे में इसके लिए एक खास चीज एकाग्रता की आवश्यकता होती है। जब महाभारत की रचना की जा रही होगी, तो उसके लेखक के मन में गीता और कृष्ण की छवि जरूर केंद्र में होगी। तभी महाभारत की रचना हुई। गीता बिना महाभारत सिफॆ एक कहानी है। वैसे रामायण में राम और रावण की भूमिका और उनके कमॆ ही प्रेरणा के मुख्य स्रोत हैं, बाकी सब कहानी है। इसमें अगर हम तथाकथित ऊब को लक्ष्य कर उसकी विवेचना करें, तो ये एक ऐसे तिलिस्म में हाथ डालने जैसा होगा, जहां सारे रहस्य, सारी विद्वता और सारे तकॆ बेजान हो जाते हैं। क्योंकि रचना के शुरू में कोई ये भविष्यवाणी नहीं कर सकता कि ये क्लासिक हो जायेगा। या ये चीज ऐसी कहानी या इतिहास लिख जायेगी, जो जन्म जन्मांतर तक सुनायी जाती रहेगी। शायद फेस बुक या गुगल के शुरुआती दिनों में ऐसी ही बात होगी। उस समय खुद इसे शुरू करनेवाले ये नहीं जानते थे कि ये सोशल नेटवरकिंग या सरचिंग नेटवकॆ एक दिन ऐसा विशाल आकार ले लेगा, जहां से सारी इंटरनेट की गतिविधियां संचालित होंगी। एडिशन साहब ने जब बिजली पैदा की होगी, तो ये वे भी नहीं जानते होंगे कि इन्होंने मानव सभ्यता की रातों को उजाले में बदल दिया है। ज्यादा बूढ़ा नहीं हुआ हूं, लेकिन ये जानता हूं कि इस धरती पर हम निमित मात्र हैं। आप जो कमॆ करते हैं, वह भी लिखा हुआ और प्रेरणा स्वरूप होता है। शायद आप माने या न माने, लेकिन ये सही है। पुरानी पीढ़ी शुरू से नयी पीढ़ी को थोड़ा अलग मानती है। पुरानी फिल्मों में भी पिता अपने पुत्र को नयी पीढ़ी के अंहकार से मुक्त होने को कहता है और आज भी आजादी के ६० सालों बात वही कहानी दोहरायी जाती है। इसे ही शायद विशेषग्य कम्युनिकेशन गैप कहते हैं। नयी पीढ़ी, जैसे संघषॆ से होकर गुजर रही है, उसमें कोई दो राय नहीं कि वह ज्यादा परिरपक्व है। पुरानी पीढ़ी में थोड़ी जडता जरूर थी, जिसने आजादी के ४० सालों तक उन परंपराओं को ढोया, जिन्हें बदल देना चाहिए था। गौर करिये, २० सालों में इस देश ने जितने फासले तेजी से तय किये हैं, उतने शायद आजादी के बाद के ४० सालों में नहीं किये। जरूरत ये है कि तटस्थ होने या आलोचक की भूमिका अपनाने को छोड़ कर पुरानी पीढ़ी नयी पीढ़ी के साथ कदम ताल करते हुए चले। पुरानी पीढ़ी के सिद्धांत कुछ और होंगे, नयी पीढ़ी के सिद्धांत कुछ और हैं। पुरानी पीढ़ी एक पत्र पाने के लिए महीनों इंतजार करती थी, लेकिन आज की पीढ़ी तकनीक के सहारे कुछ सेकेंड में इमेल के जरिये पत्र पा लेती है। बस एक सकारात्मक नजरिया चाहिए, चीजों को समझने के लिए।
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1 टिप्पणी:
वाह ! सार्थक और सुंदर आलेख.........ऊब पर ही ज्ञानदत्त पाण्डेय जी की भी पोस्ट पढने का अवसर मिला और अब यह एक और पोस्ट पढ़कर लगा दोनों मिलकर बात पूरी हुई.
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